सुरेन्द्र सिंह ठाकुर 9685280980
भोपाल– भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के द्वारा यह अनुभव किया गया कि उनके मार्गों पर यातायात की अधिकता के कारण वाहनों से प्रदूषण होता है। इस प्रदूषण के कारण प्रतिदिन कार्बन उत्सर्जन होता है।
इस समस्या को रोकने के लिए जल एवं भूमि प्रबंध संस्थान (वाल्मी), भोपाल एक साल की गारंटी में सघन वन विकसित करेगा। वाल्मी ये सघन वन, प्रदेश के तीन राष्ट्रीय राजमार्ग पर मौजूद टोल नाकों के आसपास विकसित किए जाएंगे।
प्रदेश के सोनकच्छ, बघवाड़ा व कचनरिया टोल नाके के आसपास लगभग 20,800 वर्ग मीटर के क्षेत्र में पौधारोपण किया जाएगा। वाल्मी इन तीनों ही स्थान पर वाल्मी फॉरेस्ट विकसित करेगा। वाल्मी विशेषज्ञ बताते हैं कि यह तकनीक न केवल पौधों की गुणवत्ता को बेहतर करती है बल्कि वनीकरण करने की लागत को भी कम कर देती है।
वाल्मी में कृषि संकाय के प्रमुख डॉ. रविंद्र ठाकुर बताते हैं, ‘सघन वन की पद्धति में जिन खाद का इस्तेमाल होता है, वह काफी महंगी होती हैं। उन्हें बाहर से मंगवाना पड़ता है। हमने उसमें बदलाव कर इसकी लागत को कम किया है। इससे पौधों की गुणवत्ता बेहतर हुई है। हम खाद के रूप में गौमूत्र और गाय के गोबर से बने ‘घना जीवा अमृत’ और ‘जीवा अमृत’ को डालते हैं। इसके अलावा गाय का गोबर, कृमी खाद, धान की भूसी (हस्क) को मिलाकर खाद तैयार करते हैं।
वाल्मी में तकनीकी सहायक सुनील चौधरी विस्तार से बताते हैं कि इस पद्धति में तीन प्रकार के पौधों को चुना जाता है, जिनकी ऊंचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग हो सकती है। तीन पौधे प्रति वर्गमीटर के हिसाब से रोपे जाते हैं। पहले गड्डा किया जाता है, फिर उसमें खाद की परत बिछाई जाती है, इसके बाद मिट्टी की परत होती है और फिर तीनों पौधों को थोड़ी दूरी पर रोपा जाता है। इन पौधों को नियमित रूप से एक साल तक संधारित किया जाता है। इन पौधों की बढ़त तीव्र गति से होने के कारण बांस का सहारा दिया जाता है।
वाल्मी द्वारा टोल नाके में 42 स्थानीय पौधे लगाए जाएंगे। वाल्मी फॉरेस्ट में इस तरह एक साल में घना जंगल तैयार हो जाता है। ऐसे में बारिश का पानी भी सीधे अपवाहित नहीं होता और सड़क किनारे वाहनों से उत्पन्न होने वाले कार्बन को रोकने में यह सहायक है।